सुना है तस्वीरों में यादों की रूह रहा करती है।
ज़िन्दगी से हाथ मिला ये चालें चलती है।
किसी तरह;
किसी तरह,
हाथ में उठा लो बस पुरानी कोई तस्वीर
और नज़र गिर जाए
धूल खाते, मुस्कुराते चेहरों पर।
बस नज़र भर की मोहताज हुआ करती है
फिर घुल जाती है नस-नस में नशा बन के।
हंसाती है, रुलाती है।
गुज़रे हुए लम्हों में खींच के ले जाती है।
हर लम्हा बराबर एक ज़िन्दगी के।
वक्त पर चलना चाहा है कभी?
कभी चाहो तो उठा लेना पुरानी कोई तस्वीर,
और फिर कान लगा के सुनना
जब पाँव तले लम्हे कड़कडाएंगे,
पतझड़ के पत्तों की तरह।
Tuesday, August 18, 2009
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